मै एक मंजिल की तलाश मै चली थी,
बन कर कुछ दिखाऊंगी, मगर
जाने क्यों नजरे घूरती ह मुझे ,
जाने क्यों चीरती ह निगाहे मुझे
हर निगाह जैसे कहा जायेगी मुझे
हर बात रुला जायेगी मुझे
सिसक सिसक, बहक नही
रो मगर कह नही, बेटी गरीब की....कहती ह मुझे
तू बेटी गरीब की...देती ह इल्जाम मुझे .
सांसे तेरी कर्जदार ह माँ, तुने मुझे जन्म दीया
चुभे तो दील मेरा ह टूटता
पर एक घुटन सी आज ह, ये मन मै चुभा आज ह
मै कहॉ स्वछंद के बागो मै घूमा करती थी
मै कहा, चिड़िया सी चेह्का करती थी
आज मै क़ैद हू,समाज मै ना आजाद हू
आज हर नजर मुझे ह काटती
क्यों मै बेटी गरीब की..
No comments:
Post a Comment