ये हमारे पुराने समाज के वीचार ह..
ये तो ऐसा हुआ के कओवा चला हँस की चाल अपनी चाल भी गया वो भूल,
हम स्वार्थ की अंधी दौड़ मै, क्यों गए शिक्षाये भूल
उनत्ती पाने की इच्छा मै हम, तोड़ गए हम अपने नीयम -असूल
पर मेरे अपने विचार कुछ ये कहते ह...
मै पूर्व की बाते कुछ समझ ना पाऊ आधी सी
एक तरफ उन्नति करे हम, एक तरफ बाते बेमानी सी
कुछ पाने को निकले जब तो, खोना ही ह कुछ हमको
आब प्रगति की दौड़ मै शामिल होना ही ह उन हमको
क्यूकी अध अधूरा सच, झूठ से भी बदतर ह
इसलिये हम पश्चिम अपनाये, अब तो ये ही बेहतर ह..
ये तो ऐसा हुआ के कओवा चला हँस की चाल अपनी चाल भी गया वो भूल,
हम स्वार्थ की अंधी दौड़ मै, क्यों गए शिक्षाये भूल
उनत्ती पाने की इच्छा मै हम, तोड़ गए हम अपने नीयम -असूल
पर मेरे अपने विचार कुछ ये कहते ह...
मै पूर्व की बाते कुछ समझ ना पाऊ आधी सी
एक तरफ उन्नति करे हम, एक तरफ बाते बेमानी सी
कुछ पाने को निकले जब तो, खोना ही ह कुछ हमको
आब प्रगति की दौड़ मै शामिल होना ही ह उन हमको
क्यूकी अध अधूरा सच, झूठ से भी बदतर ह
इसलिये हम पश्चिम अपनाये, अब तो ये ही बेहतर ह..
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