Monday, May 7

एक स्वपन

आकाश के सतरंगी इन्देर्धनुष मै खोजू मै प्रीये तुमको,
हर आवारा बदल ओर मदमस्त के संग छू लू मै प्रीये तुमको,
ये प्यास प्यारे से पपीहे की कोई, ओर ना पाये बुझा,
ओर कोई गाये आज इस रुत मै माल्हार, पर उस मल्हार के तरंगो मे
साज़ मै ओर हवा की सएँ सएँ मै,सुन लूं आज मै तुमको...

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