कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Monday, May 7
चित्चोर
दोस्त पाने को तर्स्स्ती रही मै उमर भर छानी दुनिया , दूंडी नगरी, घूमी मै दर बदर पर वो चित्चोर छुपा बैठा था, मन के ही एक कोने मे मै झूमी, नाची , गाई , उसे दिल के कोने मै खोज कर...
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