Friday, June 29

a mitr

मित्र मै शब्दो संग खेलती हू
अपनी ही व्यथा कह जाती हू
पर फ़िर लगता ये मुझसे खेलते
कैसे सब लिख जाती हूँ
मेरे शब्द किलकारी मारते बच्चे
मेरे शब्द अन्सों से धह्कते अंगारे

मगर फीर भी लबों से खामोश सी हू
कह कर फीर हँस देती हू
जैसे कोई पीरा थी ही नही
रोज इन शब्दो से खेलती हू
रोज इनका खिलौना बनती हू

No comments: