Saturday, June 30

मेरा स्वपन एक सुन्दर घर का

मैने देखा था स्वपन एक सुन्दर घर का,
बनाते हम तुम मिल कर जो,
जैसे प्रेम नीद मै,प्रेमी दो ,
अपना जहाँ सुन्दर होता, जिसमे हम रह पाते तो,
तुम मेरे संग , मै तुम संग,
दिल की बात कह पाते तो
मै राह निहारती, तुमारी प्रेम पथ पर
तुम काम से थक कर आते तो,
मै भी थकी हरी सी, हस्ती,
तुम भी कुछ मुस्काते तो,
सारी पीरा तुम मुझ से, हम तुम से कह पाते तो,
मेरे दो नन्हे से पंछी,
इस नीड मै मुस्काते तो,
अब तो यू मुस्कान छुपी ह
जैसे बदली सुख़ की ढकी ह
बरस बरस कर आती तो
प्रेम राग सुनाती तो , ये बदली झुक जाती तो

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