बांसुरी भी आने को आतुर ह सुन निमंत्रण हरी का,
उन hatho की लकीरों मे खो जाने का,
दीवानी सी हो जाने का उसका भी मन आज ह
मगर बेरी ह जग वाले, पास हो के भी न पी के पास ह
उसमे भी अजब सी प्यास ह, बन्धन रहित सी आज ह
मोहन के मोहित रुप मे खोयी सी ह
बावरी सी हर घडी, जगी सी लगे पर सोयी सी ह
वो हर पल हर khshan उसकी यादों के paas ha
radha और हरी के मिलन का दिन क्या आज ह?
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