Friday, July 25

इशक और बदनामी

तुमने कहा की ये इश्क
चलो माना ये इश्क ह
मगर एक बात कहे दे तुमको
की हमने भी ऐसे इशक को
काफूर होते देखा ह
लोग बातें बुनते बहुत हा
इशक इश्क चिल्लाते बहुत

पर इस जज्बे को हमने जाने
क्यों नासूर बनते देखा ह
एक दिन ज़माने की आग मे
ये इश्क विषक सब जल जाते ह
तब लोग पल्ला झाड़ कर
आगे को बढ जाते ह
ये बदनामी का दरिया ह आजकल
इस बदनामी के डर से
बहुत से रंझो को हमने
हीरो को रुलाते मिटते देखा ह

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