Friday, July 18

मेरी इच्छा


मेरी मर्जी मेरी इच्छा
नही मायने रखती कोई
मैं खुश हूँ तो तुम रोते हो
मैं रोई तो हर रोज थी रोई
एक एक पल तनहा तनहा
मत पूछो मैंने था काटा
हर बार पुकारा, तुमको बुलाया
पर तुमने कुछ न बताया
मै उस बाबुल के आंगन से
निकली तो थी पर न रोई
क्यूकी सोचा मैने ऐसा?
कैसा ये हा अजब सा नाता
मे जिनकी बाँहों मे पली थी
जिनके आंगन मैं खेली थी
जब वो ही मुझको समझ न पाए
तो पराया और कोण समझेगा
मैं उस दिन मर गई अपनी आत्मा
को कब्र मे दबा के, मगर अनजाने कैसे
फ़िर ये कलमुही जाग उठी हा मेरी इच्छा

हे प्रभु दबा दो मेरी इच्छा
मेरी इच्छा उनकी पीरा है
मेरा हसना उनकी सजा हा

1 comment:

Meri Ankahi Dastaan said...

in lafzon ki gehrayi samajna har kisi ke bas ki baat nahi hoti

is khuli kitaab ko padhna acha laga

mann aur dil saaf ho tab vichar saaf utar aatey hai kagaz par...kalam ka sath thaamey rakhna...

khush rahein..jeetey rahein...