Tuesday, October 28

लेखनी से प्रेम

ऐ मेरी लेखनी तू मेरी साथी
ऐसे जैसे दीप और बाती
हम तुम साथ रहा करते ह कब से,
हम तुम जला करते ह पग पग पे,

ऐ मेरी लेखनी तू तो बावरी,
हुई जात ह हर पल जो
तुज्को न कोई देखे ऐसे
मसत पवन सी चलती तू,
बसंत मै जैसे रंग्रगीले
फूल खिलेखिले से हों

मेरे लिए तो तू ही सर्वस्व हा
तू देती ह शकती जो
उसी शक्ती से जीवन ज्योती मेरी
ज्वलित सी रहती ह
तू आशा का आकाश ह मेरा
तू मेरा सावन ह
तू ही मेरी सखी सहेली
और तू ही मेरा साजन ह

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