का से कहूँ सजन मै पीरा ?
अंतहीन सा अकेलापन तुमको ,
खलता ह हर एक पल पल
तुम कह न पाते हो किसी से ,
जानू हूँ मै ये सब , पर
तेरी पीरा आस पास ही
मेरे अंतर्मन को भेदे ,
तेरा आंसू साथ साथ ही
मेरी आँखों से भी निकले ,
तेरी कड़वी कड़वी बातें
लगती ह मुजको दवा सी ,
तू कुछ भी बोल पिया ,
तेरी पीरा अब मै जानू
पर अपनी पीरा किसको कहूं मैं
कैसे कहूँ मैं ?
शायद कहने को शब्द नही ह
अभ्व्यक्ती अधूरी ह पिया
कसे कहूँ सजन मै पीरा ?
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