Tuesday, October 28

का से कहों सजन मै पीरा

का से कहूँ सजन मै पीरा ?

अंतहीन सा अकेलापन तुमको ,
खलता हर एक पल पल
तुम कह पाते हो किसी से ,
जानू हूँ मै ये सब , पर
तेरी पीरा आस पास ही
मेरे अंतर्मन को भेदे ,
तेरा आंसू साथ साथ ही
मेरी आँखों से भी निकले ,
तेरी कड़वी कड़वी बातें
लगती मुजको दवा सी ,
तू कुछ भी बोल पिया ,
तेरी पीरा अब मै जानू
पर अपनी पीरा किसको कहूं मैं
कैसे कहूँ मैं ?
शायद कहने को शब्द नही
अभ्व्यक्ती अधूरी पिया

कसे कहूँ सजन मै पीरा ?

No comments: