जे प्यार गुनाह हे ते…
जे प्यार गुनाह हा ते,
ओह रब क्यों गुनेह्गर नहीं,
ए अजीबो गरीब रस्म ने ज़माने दियां,
लोकी रहंदे ने आतंक दे साये वीच,
ते कहंदे ने प्यार नू गुनाह,
ओ अतल,अथाह प्यार जे गुनाह हुंदा,
ते कीवें एक नूर नल, रोशन जहाँ हुंदा,
गुनाह प्यार नही ए बंदया,
गुनाह ते ओ बगावत हा,
जो इंसान नु इन्सान नल
नफरत करना सिखांदी ह..
जे प्यार गुनाह हा ते,
ओह रब क्यों गुनेह्गर नहीं,
ए अजीबो गरीब रस्म ने ज़माने दियां,
लोकी रहंदे ने आतंक दे साये वीच,
ते कहंदे ने प्यार नू गुनाह,
ओ अतल,अथाह प्यार जे गुनाह हुंदा,
ते कीवें एक नूर नल, रोशन जहाँ हुंदा,
गुनाह प्यार नही ए बंदया,
गुनाह ते ओ बगावत हा,
जो इंसान नु इन्सान नल
नफरत करना सिखांदी ह..
4 comments:
hi shevata u r poem oh benaam rishata( ਉਹ ਬੇਨਾਮ ਰਿਸ਼ਤਾ )
is update on www.punjabinewsonline.com
n my blog www.sukhsidhu.blogspot.com
shaveta! ur poems on ur blog are very sensetive n fine...congrates for these poems...if psbl send me ur book..........amarjeet kaunke
thanx, one another link is shavetanarulablogspot.com
hi shaveta how r u , how r going u r life , now where u?
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