मैं प्रंतिबध हूँ एक अछी शिक्षा देने के लिए
मै प्रतिबद्ध हूँ समाज को सही राह चलाने के लिए
मैं उन नियमो को नहीं मानती जो समाज के कुछ लोगो ने
बनाये ह अपनी ज्रुरुरत के लिए,केवल दिखावे के लिए,
कुछ ठेकेदार समाज के खुद ही उन नियमो को तोड़ते ह,
जीन्हे वो लोगो का मार्गदर्शक कहते हैं,
मॆं प्रतिबद्ध हूँ समाज को सचाई से वाकिफ करने के लिए
मॆं प्रतिबद्ध हूँ जो कहती हूँ, कर दिखने के लिए.
कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Monday, March 30
Tuesday, March 3
ओह बेनाम जिहा रिश्ता
Oh benam jeha rishta..
ओह चेहरा जीनु मै अपनी जिंदगी विच
भुला सकदी नही, ओह नाम जीनु मै कदे
अपने नाम नाल जोड़ ते नही सकदी, पर
जेनू अपने जेहन तो मिटा सकदी नही
ओह एक नाम तेरा ही हा,
ओह रिश्ता तेरा- मेरा ,किसी नाम दा मुहताज नही,
ओह रिश्ता, किसे कागज ते लगी मोहर दा बखान नही
पलकां जिन्दे दुःख नाल भिज जान
जीदी खुशी नाल,मेरे मन दे बुझे चिराग फ़िर जल जान
ओह एक नाम तेरा ही हा
ओह चेहरा जीनु मै अपनी जिंदगी विच
भुला सकदी नही, ओह नाम जीनु मै कदे
अपने नाम नाल जोड़ ते नही सकदी, पर
जेनू अपने जेहन तो मिटा सकदी नही
ओह एक नाम तेरा ही हा,
ओह रिश्ता तेरा- मेरा ,किसी नाम दा मुहताज नही,
ओह रिश्ता, किसे कागज ते लगी मोहर दा बखान नही
पलकां जिन्दे दुःख नाल भिज जान
जीदी खुशी नाल,मेरे मन दे बुझे चिराग फ़िर जल जान
ओह एक नाम तेरा ही हा
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