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जिंदगी ........
एक असीमित विस्तृत सा मरुस्थल ,
जीवन के प्रत्येक पहलू पर ,
चन्द्र की भांति लगा हुआ एक ग्रहण,
एक कड़वाहट का अहसास,
बिसरी भूली सी मिठास,
और कभी कभी उस कड़वाहट को अपना कर ,
सदा मुस्कुराने का हमारा एक कृतसंकल्प,
सदैव हमको परेशानी मैं डालने वाला हमारा ही व्यक्तित्व,
हमें एक अजब उलझन में डालता नग्न सत्य,
उस जीवन के व्यसनी हम
उस कंटीले जीवन को जिए जाते है
क्यों कि सत्य हमें ओछा और घिनौना,
और कभी नग्न तलवार सा,
प्रतीत होने लगता है,
और जो जिंदगी ....
झूठ के सहारे
व्यतीत करनी किसी ज़माने में
जहर सी लगती थी
फिर वही झूठी जिंदगी झरने सी मीठी
लगने लगती है,
परिस्थितियाँ........
इंसान को ऐसा बना देती हैं कि वो,
एक झूठ से दूसरे झूठ के अन्दर
इतना उलझ जाता है,
कि चाह कर भी मकड़ी के समान ,
उस झूठ के जंजाल का आवरण उतार कर
फैंक ही नहीं पाता, रोना चाह कर भी अपने आंसुओं को ,
जज्ब कर लेना बेहतर समझता है ,
ताकि लोग .........
उन आंसूओं को ,
मगरमच्छ के आंसू समझने कि भूल न कर बैठे,
वो अपने छिले हुए जख्मो पर खुद ही ,
हस्ते हस्ते नमक छिडकता रहता ह ,
शायद इसी मैं उसे सब से जायदा सुकून मिलता ह
फिर आंसू धीरे -धीरे सूखने लगते है ,
और इसे ही लोग जिंदगी का अनुभव कहते है !
1 comment:
nice one......... keep it up.....
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