तनहा रहे , तनहा सफ़र था
जब तुम मिले तो क्या मंजर था
मैं वीराने में भटक रही थी ,
और मेरा साया भी मेरा न हमसफ़र था ,
आंसू टूट कर मोती से बिखर गए थे,
और जर्रे जर्रे में अकेलापन बसर था
मैं खामोश रह गयी जब मिले तुम,
और ख़ामोशी मैं एक प्रशन भर था ,
की मैं इस सूनेपन से घबरा गयी हूँ
अब अकेले चलते चलते पथरा गयी हूँ
तुम आ अमृत से जीवन भर दो
और कंटीली रहो को फूलों से भर दो
आज का दिन उस के लिए शुभ है
क्युकी आज प्रेम दिवस है !
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