Tuesday, August 24

क्युकी आज प्रेम दिवस है !



 तनहा रहे , तनहा सफ़र था
 जब तुम मिले तो क्या मंजर था
मैं वीराने में भटक रही थी ,
और मेरा साया भी मेरा न हमसफ़र था ,
 आंसू टूट कर मोती से बिखर गए थे,
 और जर्रे जर्रे में अकेलापन बसर था

मैं खामोश रह गयी जब मिले तुम,
और ख़ामोशी मैं एक प्रशन भर था ,
  की मैं इस सूनेपन से घबरा गयी हूँ


अब अकेले चलते चलते पथरा गयी हूँ

तुम आ अमृत से जीवन भर दो
 और कंटीली रहो को फूलों से भर दो
 आज का दिन उस के लिए शुभ है
 क्युकी आज प्रेम दिवस है !


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