Tuesday, October 12

एक बार फिर

मॆं अपनी हँसी कि आवाज मॆं अपने ग़मों को
जज्ब कर लेना चाहती हूँ
मॆं दुनिया के शोरो गुल मॆं खुद को
ख़त्म कर लेना चाहती हूँ
 मेरी हँसी मॆं मधुर खनक नहीं ह
मेरी आवाज मॆं मिठास नहीं ह
बस एक कर्कश सी हँसी
 मेरे वजूद का हिस्सा बन गयी ह
मॆं उस हसीं को फिर से मधुर बनाने कि
असफल कोशिश करना चाहती हूँ
मेरे अपनों ने मेरा अपना होने का
बहुत दावा किया ह हर वक्त
उन अपनों से एक बार फिर
साथ देने की भीख मांगना चाहती हूँ
मॆं फीर से एक बार जीने कि असफल कोशिश
करना चाहती हूँ,
मेरा साथ दे दो , मॆं अकेली   घुट घुट के
मरना नहीं चाहती हूँ

1 comment:

Narayan said...

11) "यदि मानवीय रिश्ते एक-दूसरे को पतन की ओर ले जा रहें हो तो ऐसे रिश्तों का कोई मोल नहीं है। रिश्तों का वास्तविक मतलब एक-दूसरे को हर प्रकार से उत्थान की ओर अग्रसर करना है। वर्ना इन्हें मजबूरन ढोने के स्थान पर समाप्त करना ही श्रेष्ठ है। क्योंकि जाग्रति से पूर्व ये रिश्ते प्रारब्ध के परिणाम स्वरुप हमें मिलतें हैं।.....Narayan

Shaveta ji, We are the children of God, when He has sent us on this Earth then He would definitely arrange something for us. If He does nt provide what is necessary for us then leave every thing on Him, don,t beg.and say "Dena ho tao do varna baitho Asmaan pe, tujhse kuchh bhee mangege nahin kewal or kewal tere pyaar mein marna sweekar kar lenge" but with great happyness, ghut-ghut ke nahi.