तस्वीरें हमेशा हस्ते हुए खिचवाई जाती ह,
तस्वीरों के पीछे सदा कहानिया छुप जाती ह
तस्वीरों से इंसान कि खुशहाली का अंदाजा लगाने वाले लोग
तस्वीरों के पीछे का सच कभी जान पाते नहीं
कभी जान भी जाये तो समझ पाते नहीं
कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Friday, November 26
Thursday, November 25
is shahr ke bashar
बहुत से मंजर देखे , ताउम्र देखते रहे
दुनिया चाँद पे पहुंची होगी
मगर यहाँ रहने वाले यही घुट घुट के मरते रहे
अपने आगे लोगो के जोशो खरोश को ठन्डे होते देखा मैने
बहुत से नयी सोच वाले, अपनी सोच को बदलते गये ,
अपने आगे सपनों को ढेर होते देखा मैने,
एक रोटी का टुकड़ा भी नस्सेब न हुआ जब
तो बशर इस शहर के उसी टुकड़े के लिए लड़ते गये
इतना कोई न सोच पाया कि चलो हाथ बड़ा के
रोटी और एक बना ले,बस एक उस चाँद के लिए
सेकड़ो रोज मरते गाये, लुटते गये , पिटते गये
ए खुदाया इस शहर के हिस्से मॆं कुछ नेकी बाँट
वरना कौरव और पांडव न हर जन्म मे लड़ते रहे मिटते रहे
दुनिया चाँद पे पहुंची होगी
मगर यहाँ रहने वाले यही घुट घुट के मरते रहे
अपने आगे लोगो के जोशो खरोश को ठन्डे होते देखा मैने
बहुत से नयी सोच वाले, अपनी सोच को बदलते गये ,
अपने आगे सपनों को ढेर होते देखा मैने,
एक रोटी का टुकड़ा भी नस्सेब न हुआ जब
तो बशर इस शहर के उसी टुकड़े के लिए लड़ते गये
इतना कोई न सोच पाया कि चलो हाथ बड़ा के
रोटी और एक बना ले,बस एक उस चाँद के लिए
सेकड़ो रोज मरते गाये, लुटते गये , पिटते गये
ए खुदाया इस शहर के हिस्से मॆं कुछ नेकी बाँट
वरना कौरव और पांडव न हर जन्म मे लड़ते रहे मिटते रहे
Monday, November 22
door talak
मुझको अभी दूर तलक जाना ह, यही एक मंजिल नहीं जिसको मुझे पाना ह,
बहुत अभी रास्ते ह जिन पर चल के देखना ह,
और चलते चलते खुद से भी दूर कहीं जाना ह,
मॆं उनमे से नहीं जो थक के बैठ जाया करते ह,
मॆं वो नहीं जो हार जाया करते हैं
मुश्किलें आन पड़ी तो क्या हुआ
मुझे इनसे पार पाना ह,
मुजे अभी दूर तलक कहीं दूर तलक जाना ह
,
बहुत अभी रास्ते ह जिन पर चल के देखना ह,
और चलते चलते खुद से भी दूर कहीं जाना ह,
मॆं उनमे से नहीं जो थक के बैठ जाया करते ह,
मॆं वो नहीं जो हार जाया करते हैं
मुश्किलें आन पड़ी तो क्या हुआ
मुझे इनसे पार पाना ह,
मुजे अभी दूर तलक कहीं दूर तलक जाना ह
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Friday, November 19
मॆं नहीं हूँ
मॆं बस मॆं नहीं हूँ
मॆं एक अबला हूँ कभी जो जुल्म के आगे झुक जाती ह
कभी मॆं एक मशाल हूँ जो आग बन के दहक जाती ह
मॆं एक आत्मा हूँ उस मृत शरीर की
जो कभी आग मे झुलसा होगा
कभी मॆं एक शीत पवन का झोंका हूँ
जो कभी बहकी सी रात मॆं महका होगा
मॆं कभी परिस्थितयो के आगे झुक जाती हूँ
मॆं कभी छोटी सी बात पे अड़ जाती हूँ
कभी हठीली हूँ, कभी समझने मॆं जटिल हूँ
परन्तु मॆं जो दिखती हूँ उससे कहीं अधिक सबल हूँ
कभी प्यार सी निर्मल हूँ
पर मेरी रचनाओ कि मॆं
हरदम मॆं नहीं हूँ
मॆं एक अबला हूँ कभी जो जुल्म के आगे झुक जाती ह
कभी मॆं एक मशाल हूँ जो आग बन के दहक जाती ह
मॆं एक आत्मा हूँ उस मृत शरीर की
जो कभी आग मे झुलसा होगा
कभी मॆं एक शीत पवन का झोंका हूँ
जो कभी बहकी सी रात मॆं महका होगा
मॆं कभी परिस्थितयो के आगे झुक जाती हूँ
मॆं कभी छोटी सी बात पे अड़ जाती हूँ
कभी हठीली हूँ, कभी समझने मॆं जटिल हूँ
परन्तु मॆं जो दिखती हूँ उससे कहीं अधिक सबल हूँ
कभी प्यार सी निर्मल हूँ
पर मेरी रचनाओ कि मॆं
हरदम मॆं नहीं हूँ
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