मॆं बस मॆं नहीं हूँ
मॆं एक अबला हूँ कभी जो जुल्म के आगे झुक जाती ह
कभी मॆं एक मशाल हूँ जो आग बन के दहक जाती ह
मॆं एक आत्मा हूँ उस मृत शरीर की
जो कभी आग मे झुलसा होगा
कभी मॆं एक शीत पवन का झोंका हूँ
जो कभी बहकी सी रात मॆं महका होगा
मॆं कभी परिस्थितयो के आगे झुक जाती हूँ
मॆं कभी छोटी सी बात पे अड़ जाती हूँ
कभी हठीली हूँ, कभी समझने मॆं जटिल हूँ
परन्तु मॆं जो दिखती हूँ उससे कहीं अधिक सबल हूँ
कभी प्यार सी निर्मल हूँ
पर मेरी रचनाओ कि मॆं
हरदम मॆं नहीं हूँ
1 comment:
1)"हृदय=हरी+दया यानि जहाँ सदा प्रभु की दया प्राप्त होती है। इसीलिए हृदय से संचालित मानव बहती नदी के सामान होता है, जहाँ नदी को ढलान मिलता है वह बहती चली जाती है, नदी अपना धरातल सुनिश्चित नहीं कर सकती, वो निर्जन स्थानों, रेगिस्तान, शमशान, सुन्दर सुन्दर घाटों व् जंगलों से सामान भाव में ही बहती है।"
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