मुझे क्या चाहिए, क्यों कब और कैसे?
ये बताने के लिए मेरे साथी शब्द ही तो ह,
मुझे , जो दो पल बचे ह
उनमे तुम्हारा साथ चाहिए
क्युकी जी भर के चाहती हूँ जीना
मैने तपते रेगिस्तान की रेत पर
बहुत से दिन रैन
नंगे पाँव चल कर बिता दिए ह
और अब उन पगों पर छाले पड़ गए ह
मैं जब जब चलती हूँ काँटों पर
लगता ह की कोई जख्मो पर नमक छिड़क रहा ह
मुझे अब एक शीतल सी फुहार चाहिय्र
मैं चाहती हूँ की मेरे बच्चो को कुछ बनाने का अपना सपना
मैं तुम्हारे साथ dekho , तुमारी तकलीफों को अपना कर
अपनी तकलीफे तुम्हारे साथ bantoo
फिर वो दुःख , चिंता बस चिंतन बन के रह जाएँ
मैने बहुत से ख्वाब देखे ह
पर वक्त थोडा ह
इसलिए तुमसे एक निवेदन ह
मेरे पास जो समयाभाव ह
उसे समझ कर , तुम जल्द
से जल्द मेरे सपनो में रंग भर दो
कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये