Thursday, March 17

कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये( ek nivedan

मुझे क्या चाहिए, क्यों कब और कैसे?
ये बताने के लिए मेरे साथी शब्द ही तो ह,
मुझे  , जो दो पल बचे ह 
उनमे  तुम्हारा साथ चाहिए
 क्युकी जी भर के चाहती हूँ जीना
मैने  तपते रेगिस्तान की रेत पर
बहुत से दिन रैन 
नंगे पाँव चल कर बिता दिए ह
और अब उन पगों पर छाले पड़ गए ह
मैं जब जब चलती हूँ काँटों पर 
लगता ह की कोई जख्मो पर नमक छिड़क रहा ह
मुझे अब एक शीतल सी फुहार चाहिय्र 
मैं चाहती हूँ की मेरे बच्चो को कुछ बनाने का अपना सपना
मैं तुम्हारे साथ   dekho , तुमारी तकलीफों को अपना कर
अपनी तकलीफे तुम्हारे साथ bantoo 
फिर वो दुःख , चिंता बस चिंतन बन के रह जाएँ
मैने बहुत से ख्वाब देखे ह
पर वक्त थोडा ह
इसलिए  तुमसे एक निवेदन ह
मेरे पास जो समयाभाव ह
उसे समझ कर , तुम जल्द
से जल्द मेरे  सपनो में रंग भर दो
कहीं इंतजार में ही मेरी ऑंखें पथरा न जाये 





 

Saturday, March 12

राजाओ के राज


कहते ह की   राजाओ के राज चले गए
पर हमने तो तानाशाहों को अब भी हुकुम चलाते   देखाहै
कहते है  की कोई अमीर गरीब में फर्क नहीं
हमने तो आज भी अमीर लोगो को गरीब 
मुलजिमों को कुत्ते की तरह पीछे घुमाते देखाहै



Tuesday, March 1

शर्म  वाले ही कीचड़ उछलने से डरते ह
बेशर्म तो छींटे बेहूदगी के उड़ाते ह अक्सर
शर्म वालो को ही दूसरों की नजर में गिरने का डर लगता ह
बेशर्म तो कुछ भी कहने से डरते नहीं बिलकुल