कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Tuesday, March 1
शर्म वाले ही कीचड़ उछलने से डरते ह
बेशर्म तो छींटे बेहूदगी के उड़ाते ह अक्सर
शर्म वालो को ही दूसरों की नजर में गिरने का डर लगता ह
7 comments:
बहुत ही कातिलान वयंग्य.......
कुंवर जी,
dhanywad
achi soch he
bina nisan ka chata
dhaynwad
good thought
good shaveta
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