Tuesday, October 25

अब बक्श दे मैं मर मुकी

चरागों से जली शाम ऐ , मुझे न जला तू और भी,
मेरा घर जला जला सा है,मेरा तन बदन न जला अभी,
मैंने संजो रखे हैं बहुत से राख   के ढेर दिल मैं कहीं,
सुलग सुलग के आये हैं , हवा के झोंको के दौर  भी,
मेरे आंसू फिर  भिगो रहे मेरा ही दामन और भी ,
 दूर सब हो गए , अपना कहने वाले भी
नहीं माना   कहीं उनकी गलती मगर
हम अकेले हुए और भी
अब नहीं फिर से तमन्ना जीने के बची,
जो दी थी ताकत खुदा ने प्यार की,
वो हमसे फिर से छीन ली, 
अब और अपना बचा न है,
मेरा घर, जला फुका  सा है 
और कहाँ जलाएगी ,ऐ शाम चरागों से भरी ,
मैं जल चुकी मैं फुक चुकी 
अब बक्श दे मैं मर मुकी !

6 comments:

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Bahut achhi rachna. Aapko tatha aapke pariwar ko deepawali ki hardik shubhkamna.

संजय भास्‍कर said...

प्रभावशाली प्रस्तुति
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Gyan Darpan said...

दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!

way4host
RajputsParinay

प्रेम सरोवर said...

आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।

प्रेम सरोवर said...

आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।

shaveta said...

ap sabko bhi dipawli ki shubhkamnaye, ap logo ke blog vist kie ,u ppl r great