एक प्रशन
प्रशण उठा हा मेरे दिल मे , जब औरत को इल्ज़ाम सुनने ही ह
चाहे वो सही हा हो या ग़लत , तो क्यू वो सच्चाई की प्रतिमूरति
बन कर जीती हा, क्यू दुख सहती ह, बाते सुनती ह,
कितना ही अच्छा हो की एक दिन सब जंजीरे तोड़ दे,
जब उतनी हा उंगली उस के चरित्र पर
फिर क्या करे वो सीता बन कर,
जब सीता ओर विश्या एक ही हा तो क्यू सच्चाई की प्रति मूर्ति ह क्यू?
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