तुमारा स्पर्श
भटकते हुए व्यथिथ्त म्न को तुमरा स्पर्श
जो देता था, सुकून , आज वो सुकून तेरे जाने से
क्यू? मुझ से छिन गया,
कंधे पे जिसके सर रख कर रो लिया करते थे
आज वो कंधा मुझ से छिन गया
मानते हा स्वार्थ तुमरा भी छुपा था,
प्रेम हमे करने मे, मगर आज क्यू स्वार्थ भी परमार्थ बन गया?
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