कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Monday, September 3
दर्द मै यू डूबना मुझे भी भाता नहीं मै जब भी कुछ मुस्कुराता हुआ सा गीत लिखने बेठ्ती हू मेरी बेबसी के आंसू बरबस निकल आते ह की मैं जो पाने चली थी वो पा ना सकी ओर जाने किस नशे मै खुद को खो बेठी हू
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