कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Thursday, September 6
क्या जरूरी ह?
टूटे टूटे रिश्ते, ओर रिसता हुआ नासूर दर्द से कराह्ती आत्मा, रोज छलनी करती बाते अगर रिश्तों मै कुछ बचा ही ना हो तो क्या रिश्ते निबाहना जरूरी ह? जिस नदी का पानी सूख जाये, क्या उसमे फीर से पनि बहाना जरूरी ह?
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