हर बार तड़प बढ जाती ह, सोचती हूँ अब ना मिलोंगी तुझसे
बस एक आखिरी बार मिल कर,
पर जाने क्यों ये तड़प मिल कर ओर ही गहरा जाती ह
ना मिलो तो रुलाती ह
क्या करू तेरे इस प्यार का?
जब कह ही दीया था तुम ने
की रिश्ता कभी भी ना निभेगा
फीर क्यों चाह तुझे पाने की छोड पाती नही
क्यों खुद को तुमसे मिलने से रोक पाती नही
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