कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Tuesday, September 11
सुबह तेरी कितनी दूर ह मालूम नही तुझे चलता जा ए पथिक नवजीवन की खोज मै
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