कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ
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Thursday, October 11
बहुत दिन हुए उनका कोई संदेसा आया नही, बहुत दिन हुए, दिल को चेन आया नही, वो सोचते ह हम भूल जायेंगे उने एक दिन मगर अब तक तो दिन एक बार भी वो आया नही, जो मेरी सांसों मे महका करता ह उसको अब तक साँसों से मन ये दूर कर पाया नही
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