THIS POEM IS FOR A BRAVE WOMEN
वो आंख जो नम होते-होते रह ग़ई,
वो जुबान जो लडखडा के भी सब कह ग़ई,
वो जुबान उस झाँसी की रानी की थी,
वो कहानी अजब मगर जुबानी सी थी,
वो जो सदियों से होता आया अब तक,
उसको बदलने का स्वप्न तक-तक,
वो झान्सिकी रानी सा लक्ष्ये लेकर
बढ चली, चलती गई अपने पथ पर,
वो जो ख़ुद को मर्द से काम न समझती थी,
वो नारी पहन मरदाना वस्त्र तन कर निकलती थी,
ओज था उसकी बातों मे वही,
जोश था उसकी बातों मे वोही,
मगर आज उसके सामने वो खड़े थे
जो कलम ले के जिद्द पर अडे थे
वो लोग जिनको लाट्ठी और कलम के बीच का
फर्क ही मालूम न था
उनके लिए कलम और तलवार का
काम बस बेगुनाह सर काटने का था
2 comments:
sundar
मार्मिक अभिव्यक्ति...कृपया परावाणी में नारी पर मेरी कविता और विचार देखें और टिप्पणी करें
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