वो आजादी के दीवाने थे,
दीवाने थे , परवाने थे।
वो जो कर्मठ, योगी और सयाने थे,
वो आजादी के दीवाने थे,
ओज वाणी से सारी वसुंधरा गर्जाते थे,
सवयम के पवित्र लहू से,
भारत माँ के चरण धुलाते थे,
अश्रू पूरित नैनों से, भारत को
गरिमाम्ये बताते थे,
सवर्ण चिरिया उड़ कर जो,
बंदिनी पिंजरे की बन गई,
वो पागल दीवाने उसे मात अपनी
बतलाते थे, उसके गुणगान गाते थे,
हाँ वो पागल और दीवाने थे,
आजादी........................................
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