कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Monday, May 31
वो हरदम मेरे साथ है!
उसकी आँखों मॆं शरारत है ,
उसकी बातो मॆं एक कशिश है
उसका आना मेरी जिन्दगी मॆं ,
उस खुदा की नियामत है ,
हर बात मॆं उसकी एक नयी बात है
मुझे पता है कोई हो न हो ,
बस वो हरदम मेरे साथ है!
उसकी सांसों मॆं तरंगों सा अहसास है,
उसकी हर हँसी मॆं हजारो
घुनगुरोउन की खनक है,
उसके पास होने का अहसास ही
मेरा आत्मविश्वास है ,
मुझे पता है कोई हो न हो
बस वो हरदम मेरे साथ है
मेरी हर सुबह उसकी मधुर आवाज से
शुरू होती है ,मेरी हर बात मॆं
बस उसकी बात होती है
हर रात के शुरू होने मॆं और दिन,
ख़त्म होने मॆं भी उसका ही साथ है
मुझे पता है कोई हो न हो
बस वो हरदम मेरे साथ है!
लोग कहा करते है कि
पराये कभी अपने हुआ नहीं करते
लोग युहीं कहा करते है कि फ़रिश्ते हुआ नहीं करते
मगर उसकी आवाज मॆं
फ़रिश्ते की सी आवाज है
मुझे पता है कोई हो न हो
बस वो हरदम मेरे साथ है!
Friday, May 21
जुलम बर्दाश्त नहीं होता
सहनशक्ति की देवी मुझे समझो न,
मॆं भी इंसान हूँ मुझे भी ह जीना
मेरी भी बहुत सी ख्वाहिशें,
सुप्त ह पड़ी हं ऑंखें मूंदे,
न जगाओ की वो रावन है एक सोया!
मुह बाये खड़ी हो जाये विकराल रूप मॆं,
और एक दिवस मुझे वो कर लेंगी जब अपने बस मॆं!
मॆं फिर एक विक्षिप्त, आहत पंछी की तरह
चल पडूँगी ऑंखें मूंदे उस पथ पे
मुझे रोक लो की बस हो चुकी है बहुत
मुझसे अब ये जुलम अपनी आत्मा पे बर्दाश्त नहीं होता
मॆं भी इंसान हूँ मुझे भी ह जीना
मेरी भी बहुत सी ख्वाहिशें,
सुप्त ह पड़ी हं ऑंखें मूंदे,
न जगाओ की वो रावन है एक सोया!
मुह बाये खड़ी हो जाये विकराल रूप मॆं,
और एक दिवस मुझे वो कर लेंगी जब अपने बस मॆं!
मॆं फिर एक विक्षिप्त, आहत पंछी की तरह
चल पडूँगी ऑंखें मूंदे उस पथ पे
मुझे रोक लो की बस हो चुकी है बहुत
मुझसे अब ये जुलम अपनी आत्मा पे बर्दाश्त नहीं होता
Wednesday, May 19
aansoon main bahati ab nahi
आंसूं मॆं बहती अब नहीं
तुमको मॆं आंसू दिखाती अब नहीं
मगर ऐसा नहीं की रंज कोई मुझको नहीं
मॆं तो पगली पीड़ा अपनी बताती तक नहीं
हंस देते ह लोग और जले पर नमक छिड़का करते ह बस
मॆं हँस देती हूँ जख्मो पे अपने ही, पर एक भी शब्द
जताती अब नहीं
एक उम्मीद ह उनसे की शायद वो ही जाने मेरी अनकही बातें
मगर अब उनसे भी कोई उम्मीद रख पाती अब नहीं
तुमको मॆं आंसू दिखाती अब नहीं
मगर ऐसा नहीं की रंज कोई मुझको नहीं
मॆं तो पगली पीड़ा अपनी बताती तक नहीं
हंस देते ह लोग और जले पर नमक छिड़का करते ह बस
मॆं हँस देती हूँ जख्मो पे अपने ही, पर एक भी शब्द
जताती अब नहीं
एक उम्मीद ह उनसे की शायद वो ही जाने मेरी अनकही बातें
मगर अब उनसे भी कोई उम्मीद रख पाती अब नहीं
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