अपनी तो मौज है यारो
जब हस्ते है तो खुश रहते है
जब ग़म मिलते है तो कविता बन जाती हा
क्या करें आंसू धरे रहते है आँखों मैं,
वरना तो अभी और भी सहने का दम बाकी है
ले लो किस्मत और इम्तेहान
क्युकी टाटा बिरला सरीखे बन ने की आस बाकि है
जब हस्ते है तो खुश रहते है
जब ग़म मिलते है तो कविता बन जाती हा
क्या करें आंसू धरे रहते है आँखों मैं,
वरना तो अभी और भी सहने का दम बाकी है
ले लो किस्मत और इम्तेहान
क्युकी टाटा बिरला सरीखे बन ने की आस बाकि है
7 comments:
बहुत खूब.....
achcha likha hai or prayas kare
♥
आदरणीया shaveta ji
सस्नेहाभिवादन !
निराले अंदाज़ हैं आपके:)
अपनी तो मौज है यारों
जब हंसते हैं तो ख़ुश रहते है
जब ग़म मिलते है तो कविता बन जाती है …
आप सदैव हंसती रहें , ख़ुश रहें … और कविताओं का प्रसाद बांटती रहें …
और हां , टाटा बिरला बन जाएं तो हमारा भी भला कर दीजिएगा …
:))))
बहुत बहुत मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ha jaror icha to ha, asal me jane lakhshmi or sarswati ek saath rehti nahi, isliye ham jaise budhijiwi log hamesha jindagi se sangharsh karte reh jate ha.......
hahahahahaha....bahut khub shaveta..
umeed mat khona kabhi ..keep it up
ji anju ji umeed par hi to duniya tika ke rakhi ha, or aisa bhi nahi ki ham jaise sanvedansheel vyakti unchaiyo ko choo nahi sakte... ham log jo bhi karte ha dil se karte ha... ku sahi kha na mene
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