ऐ पथिक मुझे थकना नहीं है, मैं थक गयी तो कैसे मंजिल पाऊंगी ?
मैं सो नहीं पाती रात दिन,ये बीमारी नहीं कोई बस मेरी आँखों के है स्वप्न ,
क्युकी ये मुझे सोने नहीं देते हैं, हर वक्त तड़पाते है , रोने भी नहीं देते है
मुझे आकाश भी छूना नहीं है,बस एक मेरा है स्वप्न ,
मेरे दो आँखों के तारे है, उनकी आँखों में स्वप्न बहुत सारे हैं,
जिनके लिए मैं तत्पर हूँ, कर गुजरने को कुछ भी ,
ये ही मेरी आँखों का है स्वप्न , जिनके लिए मैं जी रही हूँ पल पल
ए पथिक मुझे थकना नहीं है ......
क्युकी गर मैं थक गयी तो उन नन्हे सपनो को कौन संवारेगा ?
3 comments:
ऐ पथिक मुझे थकना नहीं है, मैं थक गयी तो कैसे मंजिल पाऊंगी ?बहुत ही खुबसूरत
और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
गजब की अभियक्ति ... थकना नहीं ... बस चलते चले जाना हैं ....
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