Wednesday, May 19

aansoon main bahati ab nahi

आंसूं मॆं बहती अब नहीं
तुमको मॆं आंसू दिखाती अब नहीं
मगर ऐसा नहीं की रंज कोई मुझको   नहीं
मॆं तो पगली पीड़ा अपनी बताती तक नहीं
हंस देते ह लोग और जले पर नमक छिड़का करते ह बस
मॆं हँस देती हूँ जख्मो पे अपने ही, पर एक भी शब्द
जताती अब नहीं
एक उम्मीद ह उनसे की शायद वो ही जाने  मेरी अनकही बातें
मगर अब उनसे भी कोई उम्मीद रख पाती अब नहीं

2 comments:

kunwarji's said...

सच में रुला दिया जी आपने!

बहुत गहरे भाव है आपकी इस अभिव्यक्ति में!

बहुत बढ़िया!

कुंवर जी,

Narayan said...

5)" स्वार्थी के लिए त्याग, और मूर्ख के लिए ज्ञान, दोनों ही व्यर्थ हैं."....Narayan