आंसूं मॆं बहती अब नहीं
तुमको मॆं आंसू दिखाती अब नहीं
मगर ऐसा नहीं की रंज कोई मुझको नहीं
मॆं तो पगली पीड़ा अपनी बताती तक नहीं
हंस देते ह लोग और जले पर नमक छिड़का करते ह बस
मॆं हँस देती हूँ जख्मो पे अपने ही, पर एक भी शब्द
जताती अब नहीं
एक उम्मीद ह उनसे की शायद वो ही जाने मेरी अनकही बातें
मगर अब उनसे भी कोई उम्मीद रख पाती अब नहीं
2 comments:
सच में रुला दिया जी आपने!
बहुत गहरे भाव है आपकी इस अभिव्यक्ति में!
बहुत बढ़िया!
कुंवर जी,
5)" स्वार्थी के लिए त्याग, और मूर्ख के लिए ज्ञान, दोनों ही व्यर्थ हैं."....Narayan
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