एक अकेली रोशनियों की तलाश मे खुद को जला बेठी
पाप पुन्ये की गन्ना करते करते, खुद को,
मकडी के जाल मे फसा बेठी, वो हर गई अब,
जीत के पागलपन मे,अपना सबकुछ दांव पर लगा बैठीं!
कागज पर ढल आई है मेरे अक्स की स्याही, कुछ और नहीं मैं बस एक रचना ही तो हूँ if u want to see the poems of my blog, please click at the link of old posts at the end of the each page
Friday, July 27
Wednesday, July 25
हैवान
जाने किस भूख मे बड़ा चला ह इन्सान
ह सब कुछ, फिर भी पाने को तुला हुआ ह इन्सान
कल तक तो रोटी के लाले थे इसको,
आज कारो तले कुचल रह ह बेबस इन्सान
कभी उंची ईमारत, कभी सुकून कभी इज्जत
को तेहस नेहस करने, चल पड़ा ह हैवान !
ह सब कुछ, फिर भी पाने को तुला हुआ ह इन्सान
कल तक तो रोटी के लाले थे इसको,
आज कारो तले कुचल रह ह बेबस इन्सान
कभी उंची ईमारत, कभी सुकून कभी इज्जत
को तेहस नेहस करने, चल पड़ा ह हैवान !
मुकदर
ये मुकदर ह जो इन्सान को सिकंदर बनते ह,
ये मुकदर ह जो इन्सान को हसाते ह,
कभी अर्शो पे चदता ह वोही इन्सान,
ये ही मुकदर ह जो उसको गिराते ह,
कभी हम भी किस्मत की लाकिरो को माना नही करते थे,
आज मानते ह ये लकीर ह जो मुकदर बनते ह!
ये मुकदर ह जो इन्सान को हसाते ह,
कभी अर्शो पे चदता ह वोही इन्सान,
ये ही मुकदर ह जो उसको गिराते ह,
कभी हम भी किस्मत की लाकिरो को माना नही करते थे,
आज मानते ह ये लकीर ह जो मुकदर बनते ह!
Tuesday, July 17
तुमारा स्पर्श
भटकते हुए व्यथिथ्त म्न को तुमरा स्पर्श
जो देता था, सुकून , आज वो सुकून तेरे जाने से
क्यू? मुझ से छिन गया,
कंधे पे जिसके सर रख कर रो लिया करते थे
आज वो कंधा मुझ से छिन गया
मानते हा स्वार्थ तुमरा भी छुपा था,
प्रेम हमे करने मे, मगर आज क्यू स्वार्थ भी परमार्थ बन गया?
अखिर क्यों
क्यू एक बेगुनाह के पास ही सबूत नही होता
उसकी बेगुनाही का?
क्यू हर गुनेहगार के पास रास्ता होता हा?
साबित करने का बेगुनाही,
क्यू जो हमे दिखता हा वो ही सच लगता हा?
क्यू सच पर्दे मे छुपा होता ह?
क्यू चालक, चालाकी खेल जाते हा?
क्यू निर्दोष पर ही मुक़द्म्मा चलता ह?
क्यू हर गुनेहगार बच निकलता हा?
क्यू आ खुदया तेरी दुनिया मे ऐसा होता ह?
Thursday, July 12
एक प्रशन
प्रशण उठा हा मेरे दिल मे , जब औरत को इल्ज़ाम सुनने ही ह
चाहे वो सही हा हो या ग़लत , तो क्यू वो सच्चाई की प्रतिमूरति
बन कर जीती हा, क्यू दुख सहती ह, बाते सुनती ह,
कितना ही अच्छा हो की एक दिन सब जंजीरे तोड़ दे,
जब उतनी हा उंगली उस के चरित्र पर
फिर क्या करे वो सीता बन कर,
जब सीता ओर विश्या एक ही हा तो क्यू सच्चाई की प्रति मूर्ति ह क्यू?
Tuesday, July 10
Sunday, July 8
मैं
हर रोज एक नया रंग हो मै, एक नया विचार हूँ मै
एक ख्वाब हू मै, एक अजब आवाज हूँ मै
मै कौन हू , उस इश्वर का अंश हूँ मै
प्रेम का आभाव हूँ मॆं
कभी प्रेम का सागर हूँ मै
कभी जलता चिराग हू मै
कभी टूटी आस हू मै
कभी आत्मविश्वास हू मै
कभी तुम मे हू मै
कभी खुद की पहचान हू मै
कभी एक बचपन
कभी एक परिपक्व आवाज हूँ मै
मै कौन हू, एक राज हूँ मै
खुद के लिए एक आग हूँ मै
उसके लिए एक बड़ा सवाल हू मॆं !
एक ख्वाब हू मै, एक अजब आवाज हूँ मै
मै कौन हू , उस इश्वर का अंश हूँ मै
प्रेम का आभाव हूँ मॆं
कभी प्रेम का सागर हूँ मै
कभी जलता चिराग हू मै
कभी टूटी आस हू मै
कभी आत्मविश्वास हू मै
कभी तुम मे हू मै
कभी खुद की पहचान हू मै
कभी एक बचपन
कभी एक परिपक्व आवाज हूँ मै
मै कौन हू, एक राज हूँ मै
खुद के लिए एक आग हूँ मै
उसके लिए एक बड़ा सवाल हू मॆं !
बिछड़ गया
आज वो दोस्त दूर चला गया
जिसने हाथ पाकर मुझे राह चलायी थी
वो मेरी रहे छोड , आगे बढ गया
जाने क्यों मुझे लोग मिलते ह, फीर दूर चले जाते ह,
आज खुश हू मगर एक कमी सी ह
मेरी आँखों मै नमी सी ह
मेरा यार , मुझे अलविदा कह गया
वो जो साथ मेरा हाथ पकड़कर चला
वो हाथ छोर बिछार गया
उसके साथ बिताये पल स्वर्णिम ह
मेरी याद की पिटारी मै बंद ह
वो मेरा हमराह था, कुछ देर को
फीर हँस कर वो गुजर गया
मेरा दोस्त मुझसे बिछार गया
जिसने हाथ पाकर मुझे राह चलायी थी
वो मेरी रहे छोड , आगे बढ गया
जाने क्यों मुझे लोग मिलते ह, फीर दूर चले जाते ह,
आज खुश हू मगर एक कमी सी ह
मेरी आँखों मै नमी सी ह
मेरा यार , मुझे अलविदा कह गया
वो जो साथ मेरा हाथ पकड़कर चला
वो हाथ छोर बिछार गया
उसके साथ बिताये पल स्वर्णिम ह
मेरी याद की पिटारी मै बंद ह
वो मेरा हमराह था, कुछ देर को
फीर हँस कर वो गुजर गया
मेरा दोस्त मुझसे बिछार गया
Saturday, July 7
प्रेम क्या ह
मुझसे पूछा उसने प्रेम क्या ह,
मैने बोला प्रेम मित्र का मित्र से,
माँ का बच्चे से, ओर पति का पत्नी से
प्रेम सिथिर नही, ये चलता ह
मानव मन भ्रमर ह,
ये कभी फूल कबी कलि को चाहता ह,
कभी इसका धरती , कभी आकाश मै मन रमता ह
प्रेम बदलता ह, स्थिर नही रहता ह
परन्तू प्रेम नही वासना ह
ये दो अलग जहाँ ह
प्रेम ह राधा का मोहन से,
ओर मीरा से भी उसका नाता ह
ग्पोइयो संग भी कृष्ण प्रेम करते थे
मन ग्पियो का भी उसी मै रमता ह
उसने सवाल पुछा था एक, उसका जवाब इसमे छुपा ह
मैने बोला प्रेम मित्र का मित्र से,
माँ का बच्चे से, ओर पति का पत्नी से
प्रेम सिथिर नही, ये चलता ह
मानव मन भ्रमर ह,
ये कभी फूल कबी कलि को चाहता ह,
कभी इसका धरती , कभी आकाश मै मन रमता ह
प्रेम बदलता ह, स्थिर नही रहता ह
परन्तू प्रेम नही वासना ह
ये दो अलग जहाँ ह
प्रेम ह राधा का मोहन से,
ओर मीरा से भी उसका नाता ह
ग्पोइयो संग भी कृष्ण प्रेम करते थे
मन ग्पियो का भी उसी मै रमता ह
उसने सवाल पुछा था एक, उसका जवाब इसमे छुपा ह
Sunday, July 1
मेरा मन
मेरा मन कहॉ कहॉ ना तुझ को खोजे
कभी कलि की खुशबु मै, कभी चंचल चितवन मॆं
तुमारी नैनों मै भ्रमित हुआ मेरा मन
तेरे प्यार से वंचित हुआ मेरा मन
तेरे अहसासो मै खोया मेरा मन
तेरे विच्रो मै घूमता मेरा मन
हर पल हर दिन,बस विचलित सा मेरा मन
सत्य नई तुम छलावा हो जानता ह मेरा मन
मगर फीर भी रातो, को दहकता मेरा मन
कभी कलि की खुशबु मै, कभी चंचल चितवन मॆं
तुमारी नैनों मै भ्रमित हुआ मेरा मन
तेरे प्यार से वंचित हुआ मेरा मन
तेरे अहसासो मै खोया मेरा मन
तेरे विच्रो मै घूमता मेरा मन
हर पल हर दिन,बस विचलित सा मेरा मन
सत्य नई तुम छलावा हो जानता ह मेरा मन
मगर फीर भी रातो, को दहकता मेरा मन
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