क़ैद मै ह बुलबुल सय्याद मुस्कुराये,
कुछ कहा भी ना जाये, चुप रह भी ना जाये..
वो क़ैद मै ह क्यूकी, पर् ~ काट दिए ह उसके,
वो उड़ के भी कही, जा कहीँ अब ना पाये.
कभी कीस्मत ना रास आये, कभी दर्द मै चील्लाये
क़ैद मै हबुल्बुल सय्याद मुस्कुराये..
जिस दिन था जन्म लीना, वो प्यारी सी बुलबुल थी,
चहकती हुई सी, आंगन मै फीरा करती,
उसे भेजा गया फीर बाहर, कुछ ग्यान ले के आये,
पर हर वक्त रहे मंडराते, डर के काले साये,
वो ग्यान तो पाती थी, पर ग्यान अधूरा था
दूर गगन मै उड़ने का , वीचार भी पूरा था,
बोली वो अपनी माँ से, उड़ना मै दूर चाहूँ ,
माँ उसकी ये बोली, बेटी हर तरफ ह दहशत के साये,
वो गुमसुम सी पड़ी रही, ना उड़ने की सोच पाये.
फिईर बड़ी हुई जो, हर वक्त थे जो पहरे,
हँसने की तहजीब , रोने के सलीके गए सीखाये,
पर अपनी मर्जी से, वो हँस भी ना पाये!
उसने उडान भर ली, दूजे पिन्जरे मै जा कर,
मासी उसकी माँ थी, सोचा था उसने आकर,
मगर माँ तो माँ ही ह, कोई ओर माँ ना बन पाये,
तोह्मते लगा कर जुल्म उसपे ढाये,
जो गुनाह उसने कीए थे ही नही, वो भी उसके सर लगाए!
कुछ कहा भी ना जाये, चुप रह भी ना जाये!
फीर एक दीन था बदला पिन्ज्रा, ब्याही वो गयी जब,
बहुत थी वो रोई, मुझे ना ब्याहो बाबुल ,
अब तो कुछ मौका ह, कुछ करने का, करने दो इस पल,
बाबुल ने फीर ये बोला, हाथ जोड़ बेटी से,
ए मेरी लाडो पयारी, समझो मेरी तक्लीफे,
मै नही सह सकता हू, समाज के कटाक्ष अब
तू जा अपने घर बेटी, कर लेना जो चाहे तू,
वो मान गयी थी उस पल, आंसू जो बाबुल के देखे!
फिर उड़ चली थी दूजे पिंजरे मे ख़ुशी से,
मगर वहाँ भी लाले, अन्न के पडे थे,
ना अन्न का दाना था, ना प्रेम ही वह था,
फीर उसे पड़ा उड़ना, रास्ता नही था,
और साथ कीस्मत बेरन का, फीर से कहीँ नही था..
उसने अपने प्रीये को अपना जब बनाया,
सारी जिन्दगी निकल गयी, इस जदोजहद मै
उसकी दबी ख्विशे, अभी भी वोही ह,
उड़ने मै जो उसने देरी बहुत ही करदी ह,
अब जो साथ थे उसके आगे नीकल गए ह,
मगर अब भी पहरे ह, जिम्मेवारियो की धूप के
उसके पर ही जल गए ह, अब क्या उड़ने का मन बनाए,
क़ैद मै ह बुलबुल,सययाद मुस्कुराये,
कुछ कहा भी ना जाये चुप रह भी ना जाये..